चाहे आग लगे या वज्र पड़े स्कूल जरूर जाना है बच्चों। मुझे हीरा नेगी ने बताया कि सभी बच्चे जान जोखिम में डाल कर इसी पुल से सुबह स्कूल को आए थे।
मैं जानता हूं अखबारों में छपी मौसम विभाग की घोषणाएं तुम तक नहीं पहुंच पाती हैं। वैसे भी ना अखबारो में गांव होते हैं ना गांव में अख़बार।
खैर वैसे भी ये घोषणाएं शहरों के बच्चों व मास्टरों के लिए होती हैं। क्योंकि मास्टर भी अब शहरों में ही रहते हैं। ये पुल तो तुम्हें प्रशासन पार करा देगा लेकिन घौरी गाड़, च्वरपेणी, सादेरी जैसे भयानक गदेरों पर तो पुल भी नहीं हैं। जिन्हें पार कर के तुम सुबह स्कूल आये हो।
बच्चों पढ़ो और आगे बढ़ो और सरकारों से सवाल पूछो कि राज्य बनने के 18 साल बाद भी हमारे प्रदेश में दुर्गम कैसे हैं और उस शिक्षामंत्री को लानते भेजो जो शहरों के शिक्षकों को सजा के तौर पर पहाड़ भेजने की बात करता है।
एक और बात आसमानी व सुल्तानी मुसीबतों के साथ साथ बाघ व रीछ (भालू) का खतरा भी बढ़ गया है। इसलिए सभी बच्चे टोली बनाकर सावधानी के साथ स्कूल आओ और जाओ।