पटना। बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और वर्तमान में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अध्यक्ष अमित शाह की कल हुई मुलाकात पर तंज कसा है। साथ ही केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि ‘अमित शाह के साथ डिनर करने के बाद नीतीश कुमार ने अपने पसंदीदा साथी गिरिराज सिंह एंड कंपनी के साथ मिलकर सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी है। उन्होंने पिछले एक साल में बढ़े अपराध, भ्रष्टाचार को लेकर भी नीतीश कुमार पर निशाना साधा।
बता दें, गिरिराज सिंह ने पिछले दिनों नवादा सांप्रदायिक हिंसा के आरोपियों से जेल में जाकर मुलाकात की थी और अपनी ही सरकार की कार्रवाई को गलत ठहराया था। उन्होंने कहा था कि जब इसी साल मार्च में नवादा के बाइपास के पास हनुमान जी की मूर्ति को तोड़ा गया तो ये लोग (आरोपी) सामाजिक सौहार्द्र बनाने में लगे थे, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रशासन के मन में ये बैठ गया है कि सांप्रदायिक सौहार्द्र तभी ठीक होगा जब मैं हिंदुओं को दबा दूंगा। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। मैं प्रशासन और समाज से निवेदन करूंगा की ये रवैया छोड़ दिया जाए। यह ठीक नहीं है।
गिरिराज सिंह की दंगा आरोपियों से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि हम ट्रिपल सी के फॉर्मूल पर अडिग हैं। उनकी सरकार रहे या जाए, लेकिन वो क्राइम, कम्युनिलिज़्म और करप्शन पर किसी तरह का कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं।
तब तेजस्वी ने कहा कि ’18 वर्षों के अज़ीज साथी गिरीराज सिंह और नीतीश कुमार अंदरखाने में मिलकर ऊपर से बनावटी विरोध प्रकट करते है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के बाद अब दोनों के साथ वर्षों से अर्जित अति विशेष नॉलेज शेयरिंग एवं ट्रेनिंग देने अमित शाह बिहार आ रहे है। कुछ दिनों बाद बिहार में इसके साइड इफ़ेक्ट्स दिखेंगे।
गौरतलब है कि जदयू और भाजपा के बीच काफी दिनों से सीटों के बंटवारे को लेकर संबंधों में तल्खी देखी जा रही थी। इसके अलावा नीतीश कुमार ने खुद यह कहा था कि उनको कोई नजरअंदाज न करे, नहीं तो वह खुद नजरअंदाज हो जाएंगे। इसके बाद अमित शाह ने कहा कि हम अपने साथियों के महत्व को समझते हैं। नीतीश के बयान के ठीक बाद ही अमित शाह को बिहार का दौरा करना पड़ा। बताया यह जा रहा है कि अमित शाह से मिलने के बाद नीतीश कुमार की चिंता में थोड़ा कमी जरूर आई है।
लेकिन जो पहले उठाए जा रहे थे, उनके जवाब अभी भी नहीं मिले हैं। सवाल यह था कि क्या भाजपा अपनी जीती हुई सीटें जदयू को देकर खुद उसकी पिछलग्गू बनने को तैयार हो जाएगी? अगर ऐसा नहीं होता है तो दोनों के संबंधों में तल्खी तय है।