समलैंगिगता अपराध है या नही, जो लोग इसके खिलाफ हैं उनका कहना है कि यह हिन्दुत्व के विरोध में है, तो कुछ लोग जो इसके पक्ष में है वो इसे आजादी के आधिकार के रूप में देखते हैं। समलैंगिगता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंची और यह मामला आगे बढ़ा। आज भी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई जारी रहेगी।
लेस्बियन, समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) कार्यकर्ताओं ने कहा है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा विश्वास है और सुनवाई शुरू होने से कुछ ही समय पहले अनुकूल निर्णयों की उम्मीद जताई है।
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक एलजीबीटी कार्यकर्ता रंजीता सिन्हा ने सर्वोच्च न्यायालय में धारा 377 की संवैधानिकता के मामले को छोड़ने के केंद्र के फैसले की तारीफ की है।
जानें क्या हुआ कल की सुनवाई में
“अच्छी बात यह है कि केंद्र ने इस मामले से खुद को हटा दिया है जिसका मतलब है कि किसी भी राजनीतिक दलों को इस मामले में हस्तक्षेप करने का मौका नहीं मिलेगा। वे राजनीतिक नेता जो कह रहे हैं कि अनुच्छेद 377 राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, उन्हें पौराणिक कथाओं और इतिहास को पढ़ना चाहिए। हमें सर्वोच्च न्यायालय पर पूर्ण विश्वास है,- “ रंजीता सिन्हा ”।
इससे पहले 2009 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने धारा 377 को विघटित कर दिया था, लेकिन आदेश को बाद में सुप्रीम कोर्ट के खंडपीठ ने खारिज कर दिया।
विस्तार से जानें क्या है धारा 377 का मतलब
धारा 377 “अप्राकृतिक अपराधों” से संबंधित है और “किसी भी व्यक्ति, महिला या जानवर के साथ प्रकृति के आदेश के खिलाफ स्वेच्छा से शारीरिक संभोग करने वाले व्यक्ति को इसमें अजीवन कारावास का दंड दिया जाता है, या दस साल और जुर्माना भी हो सकता है।