You are here
Home > breaking news > ‘धारा 377’ पर कल भी होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई,

‘धारा 377’ पर कल भी होगी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई,

Share This:

समलैंगिगता अपराध है या नही, जो लोग इसके खिलाफ हैं उनका कहना है कि यह हिन्दुत्व के विरोध में है, तो कुछ लोग जो इसके पक्ष में है वो इसे आजादी के आधिकार के रूप में देखते हैं। समलैंगिगता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंची और यह मामला आगे बढ़ा। वहीं बुधवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी रहेगी।

सुनवाई की लाइव अपडेट

 अरविंद दातार ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का यौन रुझान अलग है तो इसे अपराध नहीं कहा जा सकता। इसे प्रकृति के खिलाफ नहीं कहा जा सकता।

कोर्ट का जवाब- आप हमें भरोसा दिलाइए कि अगर आज की तारीख में कोई ऐसा कानून बनाया जाता है तो यह स्थायी नहीं होगा।

अरविंद दातार ने कहा,  अगर यह कानून आज लागू किया जाता तो यह संवैधानिक तौर पर सही नहीं होगा।

जज इंदु मल्होत्रा ने कहा कि समलैंगिकता केवल पुरुषों में ही नहीं जानवरों में भी देखने को मिलती है। 

याचिकाकर्ताओं की ओर से अरविंद दातार ने कहा कि 1860 का समलैंगिकता का कोड भारत पर थोपा गया था। यह तत्कालीन ब्रिटिश संसद का इच्छा का प्रतिनिधित्व भी नहीं करता था।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, यह मामला केवल धारा 377 की वैधता से जुड़ा हुआ है। इसका शादी या दूसरे नागरिक अधिकारों से लेना-देना नहीं है। वह बहस दूसरी है।

तुषार मेहता ने कहा कि यह केस धारा 377 तक सीमित रहना चाहिए। इसका उत्तराधिकार, शादी और संभोग के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। तुषार मेहता केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकार इस पर आज अपना पक्ष रखेगी.

रोहतगी – हां. ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के 1860 के नैतिक मूल्यों से प्राकृतिक सेक्स को परिभाषित नहीं किया जा सकता है। प्राचीन भारत की नैतिकता विक्टोरियन नैतिकता से अलग थी।

जस्टिस नरीमन ने रोहतगी से पूछा कि क्या यह उनका तर्क है कि समलैंगिकता प्राकृतिक होती है?

मुकुल रोहतगी ने महाभारत के शिखंडी और अर्धनारीश्वर का भी उदाहरण दिया कि कैसे धारा 377 यौन नैतिकता की गलत तरह से व्याख्या करती है। 

मुकुल रोहतगी बोले- धारा 377 मानवाधिकारों का हनन करती है। समाज के बदलने के साथ ही नैतिकताएं बदल जाती हैं। हम कह सकते हैं कि 160 साल पुराने नैतिक मूल्य आज के नैतिक मूल्य नहीं होंगे।

मुकुल रोहतगी बोले- धारा 377 ‘प्राकृतिक’ यौन संबंध के बारे में बात करती है। समलैंगिकता भी प्राकृतिक है, यह अप्राकृतिक नहीं है।

मुकुल रोहतगी – पश्चिमी दुनिया में इस विषय पर शोध हुए हैं। इस तरह की यौन प्रवृत्ति के वंशानुगत कारण होते हैं।

मुकुल रोहतगी – इस केस में जेंडर से कोई लेना-देना नहीं है। यौन प्रवृत्ति का मामला पसंद से भी अलग है। यह प्राकृतिक होती है। यह पैदा होने के साथ ही इंसान में आती है।

मुकुल रोहतगी – यौन रुझान और लिंग (जेंडर) अलग-अलग चीजें हैं। यह केस यौन प्रवृत्ति से संबंधित है।

मुकुल रोहतगी का तर्क- धारा 377 के होने से एलजीबीटी समुदाय अपने आप को अघोषित अपराधी महसूस करता है। समाज भी इन्हें अलग नजर से देखता है। इन्हें संवैधानिक प्रावधानों से सुरक्षित महसूस करना चाहिए।

मुकुल रोहतगी धारा 377 के खिलाफ तर्क दे रहे हैं. वह याचिकाकर्ताओं की ओर से धारा 377 को हटाने के लिए बहस कर रहे हैं.

 पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपनी बहस शुरू की।

केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए हैं

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की चार हफ्ते के लिए सुनवाई टालने के आग्रह को ठुकरा दिया और धारा 377 को अंसवैधानिक करार देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज पांच जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू कर दी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि सुनवाई टाली नहीं जाएगी।

 

अपको बता दें कि पहले इस मामले ने तब तूल पकड़ा था जब दिल्ली हाई कोर्ट ने 2009 में अपने एक फैसले में कहा कि आपसी सहमति से समलैंगिकों के बीच बने यौन संबंध अपराध की श्रेणी में नहीं होंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को दरकिनार करते हुए समलैंगिक यौन संबंधों को आईपीसी की धारा 377 के तहत ‘अवैध’ घोषित कर दिया था।

Leave a Reply

Top