उत्तराखण्ड के सीएम ने अपने जनता दरबार में जिस तरह से महिला शिक्षिका को संस्पेंड किया, उसने कई सवाल खड़े कर दिए है। महिला शिक्षिका ने भले ही मुख्यमंत्री को गाली दी हो इस बात पर उस पर कार्यवाही की जा सकती है। लेकिन उससे जरूरी बात यह है कि अगर एक टीचर की कुछ मांगे है तो क्या उसे सुनना भी सीएम सुनना पंसद नहीं करते। और क्या चुनावों के दौरान इसी तेवर के साथ वो जनता के बीच वोट मांगने जाते है, जैसे तेवर उन्होंने जनता दरबार में दिखाए थे। जनता की भलाई का ढ़ोग करने के लिए राजशाही ठाठ से सजाया गया जनता दरबार में अगर जनता सिर्फ दरबारी दोती है तो हम आजाद काहे के और काहे का लोकतंत्र। अगर प्रदेश का सीएम प्रदेश की जनता से ज्याद ध्यान अपनों का रखे तो इतना ढ़ोग करने की क्या जरूरत है औप पत्नी प्रेम में विवश सीएम को सीएम बने रहने का भी क्या औचित है आगर वो खुद कानूनों का पालान न करे।
सीएम ने जिस महिला टाचर को सस्पेंड किया है उसने जनता दरबार में आकर कहा था कि उसे कि वो न तो नौकरी छोड़ सकती न ही अपने बच्चों के छोड़ सकती है, ऐसे में उसे ऐसे स्थान पर भेता जाए जिससे उसे सहूलियत हो। इससे पहले आपको ये बताते है कि उत्तराखण्ड में टीचरों को कितनी दूर तक जाना होता है। उत्तराखण्ड में तीन स्तर पर स्कूलों में पोस्टिंग के लिए बाटा जाता है। अतिदुर्गम, दुर्गम, और सुगम। इस महिला शिक्षिका की पोस्टींग दुर्गम इलाके में है। इन दूरगामी इलाकों में अगर एक बार किसी की पोस्टिंग हो जाती है तो उस मौसम की मार तक को झेलना पड़ाता है। क्योंकि ये इलाकों मौसम की मार के कारण कई दिनों तक कटे हुए रहते है। जो सबसे बडी समस्या है।
वहीं जो जानकारी सामने आ रहा हैॆ उसके अनुसार महिला शिक्षिका अब हाईकोर्ट में अपने निलंबन के खिलाफ केस दायर करने वाली है। क्योकि महिला अभी शिक्षिका है और अभी स्कूलों की छुट्टी चल रही है, जनता दरबार फरियाद सुनने के लिए लगाया जाता है तो ऐसे में सवाल उठते है कि क्या महिला शिक्षिका का सस्पेंड करना गैर कानूनी नहीं है।