जून का महीना अपने आखिरी दौर में है और जुलाई आने में महज चंद दिनों को वक्त बचा है। ऐसे में किसानों के लिए आने वाली जुलाई किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होने वाली। किसान चिंता में हैं, वो दुखी हैं। चलिए आपको बताते हैं आखिर किसान को किस बात की चिंता सता रही है।
दरअसल, 2 जुलाई को स्कूल-कॉलेज खुलेंगे। ऐसे में किसानों की चिंता है कि वो अपने बच्चों के लिए कहां से किताबों, यूनिफॉर्म और फीस समेत बाकी चीजों का इंतजाम कैसे करेंगे क्योंकि गन्ना किसानों को चीनी मिलों से अब तक 850 करोड़ रूपये का भुगतान नहीं हुआ है। ऐसे में चिंता वाजिफ है। अब तक जो काम उधार लेकर चल रहे थे, वो भी अब नहीं हो पाएंगे क्योंकि साहूकारों ने उधार देने से भी मना कर दिया है।
कई किसानों ने सोचा था कि अपने बच्चों को प्रोफिशनल कोर्स कराएंगे, अच्छे कॉलेजों में भेजेंगे, लेकिन पैसों की तंगी के चलते कई किसानों ने अपने इन सपनों का गला घोट दिया है। बागपत की मुख्य फसल और आर्थिक मदद गन्ना ही है। जमीन के 72 फीसदी हिस्से पर गन्ने की फसल है। लगभग एक लाख किसानों की आजिविका गन्ने पर ही निर्भर है, लेकिन चीनी मिलों से भुगतान न मिलने के कारण अब ये आजिविका खतरे में है।
वहीं डीसीओ सुशील कमुार का कहना है कि वो चीनी मिलों के प्रबंधन पर इस बात का दबाव बना रहे हैं कि वो किसानों को ज्यादा से ज्यादा गन्ने का भुगतान करें ताकि गन्ना किसान अपने बच्चों का स्कूल-कॉलेजों में दाखिला करा सकें और उनकी फीस भर सकें।