नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू-कश्मीर में तत्काल प्रभाव से राज्यपाल के शासन को लागू करने की मंजूरी दी, जिसके बाद अब राज्य में राज्यपाल अधिसूचना जारी कर दी गई है।
कल, राज्यपाल नरेंद्र नाथ वोहरा ने संविधान की धारा 92 के तहत गवर्नर के शासन को लागू करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट भेजी थी।
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राज्य में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन से बाहर निकलने के बाद महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। पीडीपी के पास कुल 28 और भाजपा के पास 25 सीटें थीं। भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद महबूबा सरकार अल्पमत में आ गई।
महबूबा ने कहा कि गठबंधन का मूल उद्देश्य सुलह, कश्मीर के लोगों के साथ संवाद, आत्मविश्वास निर्माण उपायों को बढ़ावा देना और पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बना था।
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के कैबिनेट मंत्रियों के साथ बैठक आयोजित की थी, उसके बाद यह फैसला लिया गया।
बता दें, पिछले कुछ सालों में राज्य में “आतंकवाद, हिंसा और कट्टरता” बढ़ने का हवाला देते हुए बीजेपी के महासचिव राम माधव ने राष्ट्रीय राजधानी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि पार्टी के पास समर्थन वापस लेने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। उसके बाद उन्होंने पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया।
गौरतलब है कि बीजेपी और पीडीपी ने राज्य चुनावों के बाद 2015 में गठबंधन सरकार बनाई थी। हालांकि, दोनों विचारधारात्मक रूप से विभिन्न मुद्दों अलग राय रखने वाले थे।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बीजेपी की 25 सीटें थीं, जबकि पीडीपी में 28 थीं। पिछले 10 वर्षों में जम्मू-कश्मीर में चौथी बार राज्यपाल का शासन लगाया गया है। 1977 के बाद राज्य में आठवीं बार राज्यपाल शासन लागू किया गया है।
वहीं कई पार्टियों ने बीजेपी और पीडीपी के गठबंधन को अस्वाभाविक बताया और कहा कि बीजेपी ने मलाई काटने के बाद और राज्य की समस्या को नहीं हल कर पाने के बाद भाजपा ने आने वाले चुनाव को देखते हुए पीडीपी से समर्थन वापस ले लिया। गठबंधन के वक्त भी बीजेपी की ओर से कहा गया था कि देशहित में यह फैसला लिया गया है और गठबंधन तोड़ते समय भी यही कहा गया कि देशहित में यह फैसला लिया गया है। यही इनका दोहरा चरित्र है।