जम्मू कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी के साथ ब्रेकअप कर लिया हैं। इस ब्रेकअप की असली बजह जम्मू में बीजेपी कि गिरती साख से जोड़कर देखा जा रहा हैं। इससे पहले सबको लगा कि यह फैसला बीजेपी ने काफी जल्दबाजी में लिया हैं, लेकिन ऐसी खबरे भी आई थी कि इस फैसले से पहले संघ के साथ साथ पीएम मोदी को भी अवगत कराया गया था। हिंद न्यूज को सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते दिनों हरियाणा के सूरजकुंड में बीजेपी और आरएसएस की एक बैठक हुई थी जिसमें कश्मीर में बीजेपी की गिरती साख, बीजेपी के वादों और उनके विकास कार्यों के बारे में चर्चा की गई थी।
हनीमून पीरियड में थी बीजेपी
जम्मू कश्मीर में राज्य सरकार का कार्यकाल 6 सालों का होता हैं, बीजेपी ने सरकार में तीन साल रहने के बाद सरकार से समर्थन वापस लिया है। एक तरह से कहा जाए तो बीजेपी ने अपना हनीमून पीरियड पूरा करके घर वापसी की है। ऐसा इसलिए क्योंकि शुरूआत से ही बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन बेमेल गठबंधन था। जिस तरह नदियों के दो किनारे आपस में नहीं मिलते ठीक उसी तरह इस गठबंधन को देख सकते हैं। इसका उदाहरण अगर समझना हो तो बुरहान वानी को याद करना होगा, जिसके जनाजे में करीब लाख से ज्यादा लोंगों ने शिरकत की थी। पीडीपी ने उस समय दहशतगर्दों का समर्थन दिया था। ऐसे में समझ सकते हैं कि दोनों पार्टियों के बीच का गठबंधन और बीजेपी को इसका समर्थन करना वैसा ही था जैसा एक नए शादी शुदा कपल का हनीमून पर जाना और फिर वापस घर लौटना।
अवसरवादी था गठबंधन
गठबंधन से बीजेपी के हाथ खींचने के बाद से विपक्षी पार्टीयों ने आरोप लगाए कि यह एक अवसरवादी गठबंधन था। क्योंकि घाटी के हालात धीरे धीरे बिगड़ते ही चले गए। बीते तीन सालों में घाटी में पत्थरबाजी की 4799 घटनाएं हो चुकी हैं। वहीं 252 से ज्यादा जवानों को देश के लिए अपनी शहादत देनी पड़ी। कई मौकों पर बीजेपी और पीडीपी आमने सामने रहीं। संघ और बीजेपी दोनों हमेंशा से अलगाववादी नेताओं से बातचीत के खिलाफ रही, वहीं महबूबा मुफ्ती उन्हें बातचीत के लिए मनाती रही। बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि वो कश्मीर में सरकार चला ले या फिर अपने राष्ट्रवादी ऐंजेंडे को पूरे देश में बढ़ा ले।
कश्मीर की सरकार से संघ भी खुश नहीं था। संघ में एक नारा दिया जाता हैं, जहां शहीद हुए मुखर्जी वो कश्मीर हमारा है, इसी को ध्यान में रखते हुए संघ नें प्रचारक रहे राम माधव को जम्मू कश्मीर का पर्यवेक्षक बनाकर भेजा। इसके पीधे सोच यह थी कि कश्मीर में अगर सरकार बनी तो वो तमाम मुद्दे छूए जा सकेंगे, जिनका हल बाहर रहकर कर पाना कठिन होता। लेकिन सरकार बनने के साथ ही बीजेपी को पता चल गया कि जिस सोच के साथ बीजेपी ने सरकार बनाई वो गठबंधन सरकार में संभव ही नहीं हैं। लेकिन फिर भी बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती के नेत्तव में सरकार चलाई। इस दौरान बीजेपी पर कई बार अपने राष्ट्रवाद के उस मुद्दे से पीछे हटती दिखी, जिस राष्ट्रवाद ले नाम पर वो पूरे देश में वोट मांगती हैं।