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2012 के लोकसभा चुनाव का हिन्दू-मुसलमान मुद्दा, 2019 से पहले क्यों छूट रहा है

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कैराना लोकसभा उप चुनाव में ज्यादातर गांवों में रालोद को अच्छा समर्थन मिला लेकिन वो सभी जाट बहुल गांव थे और यहां के अधिकतर किसान भी मूलरूप से जाट ही हैं। सोचने की जरुरत ये भी है कि जिन किसानों को भाजपा सरकार अपना वोटर कहती है आखिर उन जाट किसानों ने रालोद को क्यों चुना। दरअसल, दंगाग्रस्त गांव लांकलिसाढ़ व बहावड़ी में भी जाट किसानों ने रालोद के हक में मतदान किया। जाट बहुल कुछ गांवों में भाजपा मुकाबले में भी रही है।कैराना व थानाभवन सीट पर जाट मतदाताओं की खासी तादाद है। शामली विधानसभा क्षेत्र में करीब 60 हजार और थानाभवन विधानसभा क्षेत्र में 45 हजार जाट मतदाता हैं।

भाजपा को उम्मीद थी कि पिछड़े वर्ग का वोटर उन्हें समर्थन देगा। इससे साफ है कि इन गांवों में जाट किसानों ने भाजपा को कम ही वोट किया हैपर ओबीसी व अन्य सामान्य वर्ग के वोटरों ने भाजपा के हक में मतदान किया। यानी आंकड़ों से साफ है कि किसानों ने कहीं न कहीं भाजपा से मुंह मोड़ लिया है क्योंकि आंकड़ों को देखें तो अधिकांश गांवों में रालोद प्रत्याशियों को अधिक वोट मिले। हालांकिकाफी गांवों में भाजपा ने भी बढ़त बनाई।

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