गुरुग्राम। मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती यह गाना अब सिर्फ गाना ही नहीं रहा। इंजीनियरिंग का काम छोड़ किसान बने विनोद ने जब इसी तर्ज पर अपने खेत में मोती उगाए तो औरों को भी लगा कि शायद कोई मजाक होने वाला है। मगर जब मात्र एक साल में कमाई लाखों में हुई तो सबकी आंखें चौंधिया गईं। खुद विनोद को भी आश्चर्य हुआ। कभी खेत के एक छोटे से टुकड़े पर मछली पालन करने जा रहे किसान को जब पता चला कि मोतियों की भी खेती की जा सकती है तो वह इस काम के लिए तैयार हो गए। अब पूरे हरियाणा के अन्य जिलों में भी मोती की खेती होने लगी है।
गुरुग्राम के उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने बताया कि आज इस किसान द्वारा लगभग एक बीघा जमीन पर मोतियों की खेती की जा रही है, जोकि जुलाई माह में तैयार हो जाएगी। उन्होंने बताया कि सन् 2016 में विनोद कुमार व उनके चाचा सुरेश कुमार जिला मत्स्य विभाग में मछली पालन के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए पहुंचे। जिनके पास जमीन का 2 फुट लंबा व 2 फुट चौड़ा एक छोटा सा टुकड़ा था जिसके कारण वह उस जमीन पर मछली पालन नही कर सकता था। ऐसे में जिला मत्स्य अधिकारी धर्मेन्द्र सिंह ने उनका मोतियों की खेती करने के लिए बताया विनोद को एक महीने की पर्ल कल्चर ट्रेनिंग लेने के लिए भुवनेश्वर स्थित सेंट्रल इंस्टीटयूट ऑफ फ्रैश वाटर एग्रीकल्चर में भेज दिया। वहां से ट्रेनिंग लेने के पश्चात् विनोद ने गांव जमालपुर में मोतियों की खेती शुरू की। जिसके परिणाम चौंका देने वाले रहे और उसे वर्ष 2017 में इस खेती से लगभग 4 लाख रूपये की आमदनी हुई। जिला मत्स्य अधिकारी धर्मेन्द्र सिंह ने कहा कि गुरुग्राम जिला प्रदेश में मोतियों की खेती करने वाला पहला जिला है। मोतियों की खेती के चौंका देने वाले परिणामों के चलते आज प्रदेश के दूसरे जिले भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मत्स्य विभाग द्वारा मोतियों की खेती करने वाले किसान को 5 प्रतिशत की सब्सिडी भी दी जाती है। उन्होंने बताया कि मोती की खेती के लिए तैयार इन्फ्रास्ट्रक्चर में लगभग 4 हजार रूपये तक का खर्च आता है। मोती की खेती के लिए सीप जिसे पायला भी कहा जाता है उसमें न्यूकिलियस डाला जाता है। इस सीप को जाल के बैग पर लगाते है और डंडे के सहारे खड़ा कर देते हैं। इसके बाद, इसे पानी के तालाब में 3—4 फुट गहरे पानी में लगभग 8 दिन से 1 महीने तक छोड़ा जाता है।
हरियाणा प्रदेश में मोतियों की खेती शुरू करने वाला यह पहला किसान है जो पेशे से इंजीनियर था। लेकिन अपने जीवन में कुछ अलग करने की चाहत में उसने प्रदेश के अन्य किसानों के लिए उदाहरण बना दिया। उसने अपने बुलंद हौंसले और इच्छाशक्ति से मोतियों की खेती की परिकल्पना को साकार कर दिया। बढ़ते शहरीकरण के कारण आज दिन—प्रतिदिन खेती के लिए जमीन कम पड़ती जा रही है, ऐसे में किसानों को आजीविका के साधन उपलब्ध करवाने तथा उनकी आय को दोगुना करने में मोतियों की खेती मील का पत्थर साबित हो रही हैं।
मोतियों की खेती करने वाले किसान विनोद का कहना है कि जब उन्होंने पहली बार इसके बारे में सुना तो उन्हें विश्वास नही हुआ, लेकिन जब उन्होंने भुवनेश्वर जाकर इसकी ट्रेनिंग ली तो उनमें मोतियों की खेती करने को लेकर आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसे करने का मन बनाया। उन्होंने इंजीनियर के पेशे को छोडक़र इस ओर अपना ध्यान लगाया और आज उसी का परिणाम है कि प्रदेश के अन्य किसानों का रूझान भी इस ओर बढ़ रहा है। उन्होंने मत्स्य विभाग के साथ साथ प्रदेश सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पर्ल कल्चर ट्रेनिंग से उनके जीवन में यह साकारात्मक बदलाव आया जिसके लिए वे सदैव उनके आभारी रहेंगे।
[हिन्द न्यूज टीवी के लिए गुरुग्राम से अभिषेक]