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गन्ना किसानों की नाराजगी के कारण कैराना में हारी BJP, सबसे ज्यादा नाराजगी थाना भवन में दिखी

गन्ना किसानों की नाराजगी के कारण कैराना में हारी BJP, सबसे कम वोट थाना भवन में मिले

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कैराना। कैराना से गठबंधन की प्रत्याशी तबस्सुम हसन फिलहाल लोकसभा सदस्य चुन ली गई हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की उम्मीदवार मृगांका सिंह को हराया है। मृगांका सिंह भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की बेटी हैं, जो कैराना से सांसद थे। उनके निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। कैराना सीट तो पांरपरिक रूप से विपक्ष के पास ही रही है। कैराना में हिंदुओं के पलायन का मु्द्दा उठाकर हुकुम सिंह ने यह सीट हथिया ली थी।

कैराना लोकसभा सीट पर 1984 में कांग्रेस के टिकट पर चौधरी अख्तर हसन सांसद चुने गए थे, जिसके बाद फिर कभी कांग्रेस को इस सीट पर चुनाव जीतने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सका है। वर्ष 1962 में बनी कैराना लोकसभा सीट पर अब तक 14 बार चुनाव हो चुका है। इस सीट के सबसे पहले सांसद 1962 में यशपाल सिंह बने थे, जो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे।

इसके बाद 1971 के चुनाव में शफक्कत जंग कांग्रेस टिकट पर सांसद बने। इसी दौरान चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस का विपक्षी मोर्चा खड़ा हो गया था, जिसके चलते 1980 के चुनाव में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी 2,03242 वोट लेकर जनता पार्टी (एस) के टिकट पर कैराना लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर सांसद बन गई थीं। वहीं, 1984 में एक बार फिर से कांग्रेस में जान पड़ी और कांग्रेस प्रत्याशी चौधरी अख्तर हसन कैराना सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे।

1996 में चौधरी मुनव्वर हसन इस सीट से सपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। 2004 में यह सीट सपा-रालोद गठबंधन के पास थी, उस समय भी चौधरी मुनव्वर हसन ही इस सीट से सांसद चुने गए थे। 2009 में तबस्सुम हसन यहां से बसपा से सांसद थीं। लेकिन 2014 में तबस्सुम के बेटे नाहिद ने सपा के टिकट से भाजपा उम्मीदवार हुकम सिंह को चुनौती दी, लेकिन मोदी लहर के चलते नाहिद हसन चुनाव हार गए। 1971 में यह सीट कांग्रेस के पास रही। 1980 में इस सीट से चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। लोगों का कहना है कि यह सीट पर ज्यादातर इसी परिवार का बोलबाला रहा है। परिवार में आपसी फूट की वजह से यह सीट दूसरे के पास गई थी।

लेकिन 1991 के बाद से हर बार भाजपा मुकाबले में रही है। 2004 के चुनाव चुनाव में भाजपा मुकाबले में नहीं रही। 1991 और 1996 में भाजपा प्रत्याशी उदयवीर सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे, तो 1998 में भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र वर्मा ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1999 में भाजपा प्रत्याशी निरंजन सिंह, 2009 में हुकुम सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे। फिर 2014 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हुकुम सिंह कैराना सीट से सांसद चुने गए।

2018 के उपचुनाव में तबस्सुम हसन को कुल 481182 वोट मिले, जबकि भारतीय जनता पार्टी की मृगांका सिंह को 436564 वोट मिले। यानि तबस्सुम हसन ने मृगांका सिंह को कुल 44618 वोटों से हराया है।

आइए, जानते हैं कि इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्य़ाशी को क्यों हार का सामना करना पड़ा? इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि यहां के गन्ना किसानों के पैसे का भुगतान न किया जाना। इस लोकसभा सीट के अंदर थानाभवन विधानसभा सीट आती है जहां से सुरेश राणा विधायक हैं और राज्य सरकार में गन्ना राज्य मंत्री हैं। उनके इलाके में भारतीय जनता पार्टी को सबसे कम वोट मिले हैं। इस क्षेत्र में तीन चीनी मिलें आती हैं, जहां पर गन्ना किसानों के भुगतान सबसे देरी से किया जा रहा है।  जिसकी वजह से यहां के गन्ना किसान सबसे अधिक नाराज थे और उनकी नाराजगी का कोपभाजन भाजपा प्रत्याशी को होना पड़ा, जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा यहां से चुनाव हार गई।

वहीं, अजीत सिंह ने अपने साथ सभी किसानों को एकजुट करने की कोशिश की। किसान चाहे किसी भी जाति या धर्म को मानने वाला हो, लेकिन रालोद की नजरों में सभी किसान हैं और उनकी समस्याओं को निपटाने के लिए उन्होंने रालोद की प्रत्याशी तबस्सुम हसन को जिताने की अपील की। इसके अलावा रालोद फिर से चौधरी चरण सिंह के फार्मूले पर काम किया। रालोद ने सबको एक साथ लेकर चलने की कोशिश की। साथ में गठबंधन का भी फायदा बहुत अधिक हुआ। अभी हाल ही में दलितों के साथ हुए अन्याय की वजह से सभी दलित भीम आर्मी के कहने और माय़ावती की अपील पर एकजुट होकर रालोद प्रत्य़ाशी के पक्ष में वोट किए।

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