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उपचुनाव में हार पर BJP में हो रहा है मंथन, जानिए- योगी के मंत्री ने क्या बताया कारण

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लखनऊ। उपचुनावों में मिली हार का संदेश बहुत बड़ा है। देश में सरकार के प्रति गुस्सा है। पार्टी के कार्यकर्ता नाराज हैं। किसानों की समस्यायें हल नहीं की जा रही हैं। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। डीजल-पेट्रोल के दाम में आग लगी हुई है। सीमा पर जवान सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान हर रोज आंखें दिखा रहा है। सेना के कैंप पर गोले बरसा रहा है। नौजवान दिग्भ्रमित है। उसको आगे की राह नहीं दिखाई दे रही है। व्यापारी परेशान है। महंगाई बढ़ती जा रही है। नोटबंदी की वजह से अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है। दलितों का उत्पीडन किया जा रहा है। लोगों को बांटा जा रहा है।

इसके बाद अगर भारतीय जनता पार्टी चुनाव हारती है तो इसमें हैरानी तो नहीं होनी चाहिए।

लोगों को कम से कम असली कारण तो समझ ही लेना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसके अलावा एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि पार्टी के नेताओं में वर्चस्व की जंग जो हो रही है। एक नेता दूसरे नेता को फूटी आंख सुहाता नहीं है। कैराना में भी कुछ इसी तरह की घटना सामने आ रही है। कैराना संसदीय क्षेत्र में एक विधानसभा सदस्य की प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती अगर भाजपा प्रत्य़ाशी मृगांका सिंह चुनाव जीत जातीं। उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता। इसलिए वे लोग मिलकर मृगांका सिंह को हरा दिए।

लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने हार का जो कारण बताया है, उसको लेकर चर्चायें कम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आम चुनाव और उपचुनावों में बहुत फर्क होता है। आम चुनावों में लोगों को ज्यादा रुचि रहती है और उपचुनाव में लोगों को उतनी रुचि नहीं रहती है। हमारे समर्थन और मतदाता गर्मियों की चुट्टियां मनाने के लिए अपने बच्चों के साथ बाहर चले गए हैं। जिसकी वजह से हम कैराना और नूरपुर की सीट हार गए।

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आपको बता दें, उत्तर प्रदेश की दो सीटों पर उपचुनाव करवाये गए, जिसमें एक लोकसभा सीट थी और दूसरी नूरपुर विधानसभा सीट थी। दोनों पर भाजपा हार गई है और गठबंधन को जीत मिली है। लेकिन मंत्री जी को यह भी पता होना चाहिए कि जो चुनाव मार्च में करवाये गए थे, उसमें तो कोई गर्मी की छुट्टी नहीं थी। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटें भी इसके पहले भाजपा हार गई थी। वहां पर तो और जबरदस्त हार हुई थी और आपकी सरकार बने भी एक साल ही हुए थे।

आमतौर पर कार्यकाल के आधे समय के पूर्व अगर कहीं पर उपचुनाव अगर होते हैं तो वहां पर सत्ताधारी पार्टी ही चुनाव जीतती है। लेकिन यहां पर तो सब उल्टा होता जा रहा है और आप अपनी कमी को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं दिख रहे हो। ऊपर से बहाना बनाते जा रहे हो।

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