उत्तर प्रदेश की कैराना सीट पर बीजेपी की हार ने बीजेपी के लिए कई सवाल पैदा कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा में चुनावों में जिस तरह से बीजेपी ने पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना जीत का परचम लहराया था तो फिर ऐसा क्या हुआ की बीजेपी की न सिर्फ हार हुई, बल्कि उसका वोट शेयर भी घट गया।
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में अपना कोई मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया था, बीजेपी ने मोदी के नाम पर ही वोट मांगा था। 2014 के दौरान भी मोदी लहर में ही बीजेपी ने 72 सीटें हासिल की थी, तो क्या इस हार का यह मतलब हैं कि बीजेपी के पास यूपी में कोई ताकतवर चेहरा नहीं हैं, जो इस प्रदेश की कमान संभाल सके।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने नेतृत्व में बीजेपी ने लोकसभा और विधानसभा की कुल 5 सीटों पर उपचुनाव लड़ा और 4 में उसे हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सवाल यह है कि क्या योगी के पास जीत का वो फार्मूला नहीं है, जो अमित शाह के पास है, या फिर योगी जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। कैराना हार की मुख्य वजह हिंदू वोटरों का घर से निकलकर वोट न करना भी है। योगी आदित्यनाथ की छवि कट्टर हिंदू वादी नेता की है। लेकिन चुनावों के बाद योगी की इस छवि में बदलाव हुआ। योगी की कट्टर हिंदू वादी की छवि में बदलाव के कारण हिंदू वोटरों का उन से मोह भंग हुआ। योगी का बार बार गोरखपुर जाना भी जनता के बीच काफी चर्चित रहा। अखिलेश ने इस बात को लपका और जनता के बीच भुनाया भी।
उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल के विस्तार में भी जिस तरह मंत्री पद दिए गए उससे भी जनता के बीच मैसेज गया की इस सरकार में अल्पसंख्यकों की अनदेखी हो रही है। जितने अल्पसंख्यक समुदाय के मंत्री होने चाहिए थे, वो बने नहीं। बीजेपी ने सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ सरकार बनाई थी, परंतु योगी के आने के बाद से एक विशेष जाति के लोगों को ज्यादा तरजीह दी गई, पोस्टिंग से लेकर सभी महकमों में उनकी तैनाती की गई।
कैराना का चुनाव लोकल मुद्दो पर लड़ा गया था, जिससे इस बात पर मुहर लग गई कि गन्ना किसानों की समस्याओं का निपटारा हुआ नहीं था। चौधरी अजित सिंह ने पूरे चुनाव को जिन्ना बनाम गन्ना कर दिया। मोदी की बागपत में हुई रैली में भी गन्ना किसानों के दर्द को दूर करने की बात कही गई, लेकिन तब तक बाजी योगी के हाथ से निकल चुकी थी। जिन्ना के मुद्दे से जनता के बीच गलत मैसेज गया, जो बीजेपी को भारी पड़ा। साथ ही अजित सिंह ने अपने बेटे की जगह तबस्सुम को मैदान में उतारा जिससे मुस्लिम के साथ साथ जाट वोटरों ने भी उसे भारी संख्या में वोट दिया, और आरएलडी का मेन वोटर जाट ही है, साथ ही एसपी, बीएसपी के रालोद के एक साथ आने से भी अजीत सिंह को काफी बल मिला और इसी गणित के कारण कैराना सीट बीजेपी बार गई।