नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक ट्वीट करते हुए कहा कि है कि उपचुनाव परिणामों से यह पता चल रहा है कि देश की जनता का मूड कैसा है। लोगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति भारी गुस्सा है। अभी तक लोग यह पूछते थे कि विकल्प क्या है। लेकिन अब ये कह रहे हैं कि मोदी जी विकल्प नहीं है, पहले इन्हें हटाओ।
गौरतलब है कि देश भर में आज 14 सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम आ रहे हैं। जिसमें चार सीटें लोकसभा की हैं और 10 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव कराए गए थे। उत्तर प्रदेश जहां पर अभी पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी, वहीं उपचुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश की कैराना सीट भाजपा के पास थी और नूरपुर विधानसभा सीट भी भाजपा के पास थी। लेकिन चुनाव परिणाम के रुझान को देखकर यह लगने लगा है कि भाजपा दोनों ही सीटों पर हार जाएगी और लोकसभा सीट पर रालोद प्रत्याशी और विधानसभा सीट पर सपा प्रत्याशी की जीत होगी।
इसी तरह से पंजाब की सीट पर कांग्रेस के प्रत्य़ाशी की जीत हो रही है। कर्नाटक में कांग्रेस प्रत्याशी भारी मतों से विजय की ओर आगे बढ़ रहा है। भंडारा-गोंडिया सीट पर एनसीपी प्रत्याशी की जीत हो रही है। केवल पालघर में भाजपा को बढ़त मिली है। वहीं उत्तराखंड की एक विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्य़ाशी आगे चल रहा है। बाकी किसी भी सीट पर भाजपा प्रत्य़ाशी आगे नहीं हैं और न ही यह उम्मीद है कि आगे के राउंड में वो बढ़त बना लेंगे।
आपको बता दें, अभी तक जितने भी उपचुनाव हुए हैं। ज्यादातर पर भाजपा चुनाव हार गई है। फिर भी लोग कहते हैं कि मोदी का जादू बरकरार है। उपचुनावों से सत्ताधारी दल की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है, लेकिन विपक्ष को यह कहने का मौका जरूर मिलता है कि लोगों के मन वर्तमान सरकार के प्रति गुस्सा है। अभी मार्च महीने में उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे जिन पर भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार हुई थी और समाजवादी पार्टी को विजय मिली थी। गोरखपुर सीट की जीत की पूरे देश में चर्चा हुई थी, गोरखपुर सीट पिछले 28 साल भाजपा या उनके सहयोगी के पास थी। जिस पर महज 29 साल के एक नौजवान ने जीत दर्ज की थी।
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन का बहुत अधिक असर देखा जा रहा है और इस गठबंधन में अगर किसी तरह की दरार नहीं पड़ी तो आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी, नहीं तो 2024 तक सत्ता में बने रहने और लगातार देश में 50 साल तक शासन करने का सपना धरा का धरा रह जाएगा।