एक दिलचस्प कहानी जो विश्व के दो महान गणितज्ञ एक अमेरिकी जॉन नैश और दूसरे भारतीय वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में-
दो महान ज्ञानी, विद्वान, प्रॉडिजी- कम उम्र में ही दोनों प्रसिद्धि पा चुके थे ,वशिष्ठ नरायण सिंह Ph.D के लिए अमेरिका गए। जहा पर उनकी एक छात्रा अलिशिया फ़िदा हुयी (हालाकि यह उनकी दूसरी शादी थी, पहली इलीनायर स्टीयर से)और कहा जाता है( अपुष्ट सूत्रों के अनुसार) कि वशिष्ठ पर भी एक अमेरिकी बाला फिदा थी, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था,
वशिष्ठ नरायण सिंह की शादी एक भारतीय नारी से हुयी। लेकिन विडंबना देखिये कि दोनो ही महान गणितज्ञों की विस्फोटक प्रतिभा को एक साथ ही स्कीजोफ़्रेनिक ग्रहण लगा। यहाँ तक तो पलड़ा बराबर रहा, लेकिन फिर भयानक मोड,
नैश को लगभग 9 साल तक अमेरिका ने सरकारी खर्चो पर इलाज करवाया, मगर वशिष्ठ अपनी क़ाबिलियत के बावजूद गर्त में समाते चले गये। वह लौटे, लेकिन सरकारो ने थोडे दिन तक उनका इलाज करवाया, लेकिन फिर छोड दिया,
उधर अमेरिका ने नैश की नौकरी बरक़रार रखी। वहमों (delusions) और बोध की गड़बड़ियों (perception disorders) के बावजूद उनको तनख़्वाह मिलती रही। वे meaningless research करते रहे।अलिशिया ने उनसे विवाह किया और परछाईं बनकर साथ रही। हौले-हौले वे काफ़ी ठीक हुए।और एक वह दिन भी आया जब प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शिक्षक और छात्र उन्हें अपनी क़लमें देते नज़र आए। और नैश विस्मित। यह क्या? क्या उन्हें नोबेल मिला है। मित्रों ने बताया, जी आपको ‘Game Theory’ के लिए नोबेल मिला है। यह उनका स्कीजोफ़्रेनिक ग्रहण के पूर्व का शोध था।
आइए अब वशिष्ठ की तरफ़ रुख करते हैं। वशिष्ठ भारत आए। उन्हें काम भी मिला। मगर रोग बढ़ रहा था और वे अपने काम के साथ न्याय नहीं कर पा थे थे। तो कोई उनकी मदद कब तक करता। भारत कोई अमेरिका थोड़े ही है कि सरकारी नियम ताक़ पर रख दिए जाते। मुँहदेखी होती तो एक महान लोकतंत्र और उसकी नैतिक छवि ध्वस्त न हो जाती। लिहाज़ा वशिष्ठ उच्छिष्ट भोजन की तरह रीसर्च के रसोईघर से बाहर। अब ऐसे में उनकी पत्नी क्या क्या करतीं। सब कुछ खो चुके वशिष्ठ का साथ देतीं तो उनका क्या होता।उन्होंने सोच-समझकर अलग रास्ते पर चलने का निर्णय लिया। 1985 मे पागलखाने में भर्ती होने के बाद जब वो घर वापस आये तो अचानक गायब हो गये, कहां गये , किधर रहे ,पता नही, सालों बाद वो अपनी पूर्व पत्नी के गांव के पास फटेहाल पागलों जैसी अवस्था मे मिले, शायद उनकी मुहब्बत उनको खींच ले गयी होगी.
कहा जाता है कि उनका रोग उनकी पत्नी के छोडकर जाने के बाद बढ गया था, वो खामोश हो गये थे, नैश की तरह खुशकिस्मत नहीं थे, उनकी अलीशिया उनको छोडकर चली गयी थी,
उधर नैश और अलिशिया की प्रेमकथा परवान चढ़ी। ख़ूब साहचर्य निभा। बच्चे भी हुए।मान-सम्मान की तो जैसे झड़ी लग गई। वे सारी दुनिया में आमंत्रित होते रहे। नैश को सुनना कपास हुए धागे को फिर से धागा बनने की कोशिश करते हुए देखने जैसा था। उनकी कहानी पर पहले किताब A BEAUTIFUL MIND और बाद मे इसी पर एक बडी फिल्म भी बनी, हर ख़ूबसूरत चीज़ ख़त्म होती है। दो साल पहले नूयार्क एयरपोर्ट से प्रिंसटन जाते वक़्त एक कार दुर्घटना में दोनों दिवंगत हो गए।दोनों एक साथ गए । इस अद्भुत प्रेमकथा का अंत भी कम रोमांटिक नहीं। वे अब इस दुनिया में नहीं हैं मगर हर २४ मई को दुनिया-भर में नैश की प्रेमकथा का का छोटा-बड़ा पाठ होता है।
और …
वशिष्ठ अब भी अपने गाँव में हैं , न होने की तरह!
[नरेश तोमर की कलम से]