बेंगलुरु। कांग्रेस-जेडीएस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आखिरकार सदन में बहुमत साबित करने की घड़ी आ ही गई। सभी पार्टियां अपने विधायकों के साथ सदन में मौजूद हैं। सभी विधायकों ने शपथ भी ले ली।
इस बीच, खबर यह आ रही है कि कांग्रेस के दो विधायक सदन में मौजूद नहीं हैं। पहले कुल 221 विधायक थे। अब कांग्रेस के दो विधायक कम हो गये हैं, क्योंकि वे सदन में मौजूद नहीं है। इस तरह अब कुल विधायकों की संख्या 219 हो गई है। इसमें से भाजपा के एक विधायक प्रो-टेम स्पीकर बनाये गये हैं। जो किसी को वोट नहीं कर सकते हैं। प्रो-टेम स्पीकर केवल एक परिस्थिति में ही अपना मत दे सकते हैं, जब दोनों पक्षों का मत बराबर हो। ऐसी स्थिति में प्रो-टेम स्पीकर का मत निर्णायक होगा। अगर ऐसी स्थिति बनती है तो वे भाजपा के विधायक हैं तो भाजपा के पक्ष में ही अपना मत देंगे।
खैर! यह बात दीगर है। हम चर्चा करते हैं, संख्या बल की। कुल 219 विधायक सदन में मौजूद हैं। यानि बहुमत के लिए 110 विधायकों की जरूरत है और भाजपा के पास फिलहाल कुल 103 विधायक हैं, जिसमें प्रो-टेम स्पीकर को शामिल नहीं किया गया है।
अब कांग्रेस के पास 76 विधायक बचे हैं और जेडीएस के पास 37 विधायक हैं, क्योंकि कुमार स्वामी दो क्षेत्रों से चुनाव जीतकर आए हैं। इसलिए उनकी संख्या भी अब एक कम हो गई है। अब कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों की संख्या को जोड़ दिया जाये तो इनकी संख्या 113 हो जाती है।
इसलिए संख्या बल के लिहाज से तो गठबंधन अभी भी भारी दिख रहा है। परंतु, भाजपा नेताओं का आत्मविश्वास देखकर तो यह लग रहा है कि अंदर खाने में कुछ न कुछ डील जरूर हो गई है। जिससे वे हमेशा यह कह रहे हैं कि सदन में हम बहुमत साबित कर देंगे। लेकिन अगर भाजपा सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाती है। जोड़-घटाने के बाद जो संख्याबल सामने आ रहा है तो क्या ऐसी परिस्थिति में भाजपा इतनी आसानी से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सरकार बना लेने देगी। जिस भाजपा ने राज्यपाल के जरिए पहली लड़ाई जीत चुकी है। क्या वह राष्ट्रपति का उपयोग नहीं करेगी?
ऐसी परिस्थिति में कांग्रेस -जेडीएस राज्यपाल के पास वापस जायेंगे और कहेंगे कि हमारे पास संख्या बल है, लिहाजा हमें सरकार बनाने का मौका दिया जाये। लेकिन राज्यपाल उनकी बात को कितनी अहमियत देंगे यह तो चार बजे के बाद ही पता चल पायेगा, लेकिन एक संभावना यह भी बन सकती है कि राज्यपाल उनकी बातों से सहमत न हों और राष्ट्रपति के पास अंतिम निर्णय के लिए भेज दें और केंद्र सरकार के इशारे पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाये।