You are here
Home > slider > क्या येदियुरप्पा अपनी कुर्सी को कायम रख पाएंगे या नहीं…..?

क्या येदियुरप्पा अपनी कुर्सी को कायम रख पाएंगे या नहीं…..?

Will Yeddyurappa maintain his seat or not

Share This:

29 अप्रैल को कलबुर्गी में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए बीएस येदियुरप्पा ने ऐलान कर दिया था कि वह 17 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेंगे. येदियुरप्पा ने जो कहा था वो किया भी, उनका यह दावा सच भी साबित हो गया. शपथ लेने के बाद येदियुरप्पा ने कहा कि वह बहुमत साबित करने के लिए 100 फीसदी आश्वस्त हैं। लेकिन बडा सव़ाल यह है की क्या येदियुरप्पा अपनी कुर्सी को काय़म रख पाएंगे या नही…..?

खास बाते:-

  • कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटों पर।
  • कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 78 सीटों पर।
  • कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस 37 सीटों पर।
  • कांग्रेस, जेडीएस और अन्य गठबंधन के बाद 117 के आंकड़े पर।
  • राज्यपाल वजूभाई वाला ने येदियुरप्पा को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया है.

बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट और इसके बाहर भी यही तर्क दिया है कि वह सदन में बहुमत साबित कर देगी. इस दावे का यही मतलब निकलता है कि बीजेपी कांग्रेस या जेडीएस या दोनों पार्टियों के नवनिर्वाचित सदस्यों से दल-बदल की उम्मीद कर रही है। हालांकि, भारतीय राजनीति के इतिहास में इस तरह का दल-बदल नया नहीं है. 1980 के दौर में दल-बदल के चलते ही संसद को ’52वें संविधान संशोधन एक्ट’ के जरिए संविधान में 10वीं अनुसूची डालनी पड़ी, इस 10वीं अनुसूची को एंटी डिफेक्शन लॉ (दल-बदल विरोधी कानून) के नाम से जाना जाता है.

क्या कहता है एंटी डिफेक्शन लॉ (दल-बदल निषेध कानून)?

अनुसूची के दूसरे पैराग्राफ में एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत अयोग्य करार दिए जाने का आधार स्पष्ट किया गया है।

  • यदि कोई विधायक स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता त्याग दे
  • अगर वह पार्टी द्वारा जारी किए गए निर्देश के खिलाफ जाकर वोट करे या फिर वोटिंग से दूर रहे.
  • निर्दलीय उम्मीदवार अयोग्य करार दे दिए जाएंगे अगर वह किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाएं
  • एक पार्टी का विलय दूसरी पार्टी में हो सकता है लेकिन इसके लिए कम से कम पार्टी के दो-तिहाई विधायकों का वोट जरूरी है.

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है कि स्वेच्छापूर्वक सदस्यता छोड़ना इस्तीफा नहीं है, बल्कि इसकी व्याख्या कहीं ज्यादा विस्तृत है. कोई सदस्य किसी राजनीतिक पार्टी से स्वेच्छा से अपनी सदस्यता छोड़ सकता है भले ही उसने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा ना दिया हो.

एक दूसरे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी पार्टी का कोई विधायक अपनी राजनीतिक पार्टी से बाहर किसी और नेता को सरकार बनाने के लिए समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंप देता है तो यह मान लिया जाएगा कि उस सदस्य ने पार्टी की अपनी सदस्यता स्वेच्छापूर्वक त्याग दी है.

क्या हो सकता है:-

  • इस तरह से अगर कांग्रेस या जेडीएस का कोई भी विधायक फ्लोर टेस्ट में येदियुरप्पा सरकार के पक्ष में वोट करता है या फिर समर्थन पत्र देता है तो उसे दल-बदल माना जाएगा. हालांकि ऐसी स्थिति में कर्नाटक विधानसभा का स्पीकर यह फैसला करेगा कि सदस्य एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत दोषी है या नहीं.

बीजेपी की उम्मीद जेडीएस के कांग्रेस विरोधी विधायकों पर टिकी हुई है. दूसरी तरफ, कांग्रेस के कुछ लिंगायत समर्थक विधायक खासकर बॉम्बे कर्नाटक क्षेत्र के विधायक भी बीजेपी की ‘मदद’ करने के लिए तैयार बताए जा रहे हैं।

Leave a Reply

Top