जब भी कोई व्यक्ति किसी भी बीमारी से पीड़ित होता है तो वो अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास जाता है, लेकिन अगर वो डॉक्टर उसका इलाज न करें तो फिर उसकी बची-कुची उम्मीदें भी टूट जाती हैं। ऐसी ही उम्मीदें आजकल देहरादून के दून अस्पताल में टूटती हुई नजर आ रही हैं। दरअसल, सरकार द्वारा दून अस्पताल को मेडिकल कॉलेज का दर्जा देने के कारण मरीजों को इस अस्पताल में इधर से उधर भटकना पड़ रहा है। जिस वजह से वहां के डॉक्टरों द्वारा मरीजों के इलाज में कोताही बरती जा रही है। हालात ये हैं कि मरीजों को ये तक नहीं पता कि डॉक्टर कब मिलेंगे या फिर मिलेंगे ही नहीं। आपातकालीन सेवाओं में भी मरीजों के लिए बेड तक नहीं हैं और नर्सों द्वारा मरीजों से अभद्र व्यवहार कर उन्हें खुद बाहर से स्ट्रेचर लाकर मरीज को उस पर लेटने के लिए कहा जा रहा है।
CMS केके टम्टा का कहना है कि उनके द्वारा प्रशासन को स्टाफ की कमी के लिए कई बार अवगत कराया गया है। साथ ही मेडिकल कॉलेज को हटाकर अस्पताल बनाए जाने की बात भी उनके द्वारा कही गई थी। आज स्थिति ये है कि अस्पताल में न तो पीने का पानी है और न ही मरीजों के लिए दवाइयां।