कब सुधरेंगे वाहन चालक, कब सुधरेंगे मासूमों के जिन्दगी से खिलवाड़ करने वाले, मौत के बाद भी नहीं सुधरते ये चालक, जी हां कुशीनगर में हादसे के बाद 13 मासूमो के मौत के बाद भी किसी के जहन पर कोई फर्क नहीं पड़ता नजर नहीं आ रहा है, गोरखपुर और आस पास के सभी स्कुल कल की घटना को लेकर बंद कर दिए गए थे, लेकिन गोरखपुर का एचपी स्कुल शुक्रवार खुला था, और जब इस स्कुल के बाहर लगे टेम्पो का रियलिटी चेक किया गया, तो सब कुछ पहले जैसा ही नजर आया, चार की जगह और 8 से 9 बच्चे उसमें बैठे नजर आए, आखिरकार कब सुधरेंगे वाहन चालक ,|
अगर आप अपने बच्चे को अनधिकृत वाहन से स्कूल भेजते हैं, तो सावधान हो जाइए। वाहन रास्ते में कहीं भी धोखा दे सकता है, कभी भी दुर्घटना हो सकती है, और इसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं, जनपद ही नहीं पूरे मंडल में बिना फिटनेस और पंजीयन के हजारों वाहन चल रहे हैं, अभिभावक मजबूर हैं, तो स्कूल प्रबंधन उदासीन, गुरुवार को ही कुशीनगर जनपद में हुई दुर्घटना ने सिस्टम पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, दुर्घटनाग्रस्त वैन परिवहन विभाग से पंजीकृत ही नहीं थी, चार अगस्त 2014 को सहारनपुर जिले में एक स्कूल वैन में आग लग गई, तीन बच्चे मर गए, दर्जनों घायल हुए। वर्ष 2012 में गोरखपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र में एक स्कूली वैन में आग लग गई थी, जांच में पता चला कि यह वाहन अनफिट थे जो अनधिकृत रूप से चल रहे थे, दर्जनों बच्चे जख्मी हुए, आए दिन छात्रों से भरे वाहन दुर्घटनाग्रस्त होते रहते हैं, परिवहन विभाग अभियान के नाम पर खानापूरी कर लेता है, शासन भी दिशा-निर्देश जारी कर अपने कर्तव्यों का इतिश्री कर लेता है, कुशीनगर की हृदयविदारक घटना ने भी सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है, यह तब है जब देश भर में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है।
कल की घटना के बाद अभिभावक इस कदर सहमे हुए है, कि आज खुद ज्यादा तर अभिभावक अपने बच्चो को लेने के लिए खुद स्कुल पर पहुच रहे है, क्योकि स्कुल के बाहर खड़े टेम्पो चालक इन बच्चो के जिन्दगी के साथ खिलवाड़ कर रहे है, एक टेम्पो में चार की जगह है, लेकिन उसमे 8 से 9 बच्चे बैठ कर उन्हें ले जाया जाता है, और ऊपर से लगाये पीछे उनके बैग रखे गए है, स्कुल जाने वाले और इस टेम्पो से घर जाने वाले बच्चो की बात करे तो वो काफी परेशानी से घर जाते है, क्योकि टेम्पो में उन्हें ठूस कर भरा जाता है, और उसी परेशानी में घर जाने और स्कुल को मजबूर राहते है |
इस घटना के बाद बी स्कुल प्रशासन या वाहन चालक के जहन पर कुछ फर्क पड़ा है, या नहीं ये आप तस्वीरों में साफ देख सकते हैं , यह नजारा कहीं और का नहीं बल्कि CM सिटी के शहर का है, और जब स्कुल के बाहर टेम्पो वालो को रोकना चाहां तो वो भागने लगे, लगभग लगभग सभी टेम्पो में 8 बच्चे मौजूद थे, जबकि एक टेम्पो में केवल 4 लोगों के बैठने की जगह होती है, लेकिन उसमे 8 बच्चे बैठा कर ये वाहन चालक हर दिन इन मासूमों के जिन्दगी को खतरे में डालते है ।
जब इनसे इतने बच्चों को बैठाने की वजह हमारे रिपोर्ट ने पूछी तो टेम्पो चालक का जवाब सुन कर हम भी हैरान रह गए, टेम्पो चालक की माने तो उसे कोई रोकता नहीं है, और कोई टोकता नहीं है, और जब कोई रोकता नहीं तो वो धड़ल्ले से सड़कों पर चौराहों पर फराटा भरते हुए निकल जाता है, और जब कोई हादसा होता है, तो कुछ दिनों तक अभियान चलता है, फिर समान हो जाता है, बच्चे भी कहते है, थोड़ी परेशानी होती है, लेकिन आराम से बैठ कर जाते है, बच्चो का पैर बाहर रहता है, लेकिन बच्चे आराम से जाते है, वजह है, कि उन्हें उसी टेम्पो में जाना है, उसी स्कुल में पढ़ना है, और अभिभावक इस बातो को नजर अंदाज करते है, जिसका खामियाजा कुशीनगर जैसी कई घटनाओं के जरिये भुगतना पड़ता है |
निश्चित रूप से कुशीनगर की घटना किसी के भी कलेजे को चीरने वाली है, लेकिन उसके बाद भी वाहन चालको को इस बात का तनिक भी इल्म नहीं कि वो कम से कम इस घटना के बाद सबक ले और मासूमो के जिन्दगी के सलामती के लिए उनकी हिफाजत के लिए उन्हें सुरक्षित घर पहुचाने के लिए बच्चो की संख्या में कमी लाये, नहीं तो इसी तरह घटना होती रहेगी, और लोग अफ़सोस करते रहेंगे, एसे वाहन चालको पर पुलिस को लगाम लगाना जरुरी है, ताकि ये मासूम इसी तरह हस्ते हुए अपने घर जा सके |