सेक्टर−62 स्थिति प्रेरणा जनसंचार संस्थान और प्रेरणा शोध न्यास के संयुक्त तत्वावधान में दस दिवसीय ‘संचार एवं मीडिया कौशल’ कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें पत्रकारों के नैतिक मूल्यों और कर्तव्यों पर बात की जा रही है, इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य आने वाले कल के युवा पत्रकारों में नैतिक मूल्यों और सामाजिक चेतना को जगाना है । यह समाज का दर्पण ही नहीं, बल्कि सत्यम, शिवम और सुंदरम की अभिव्यक्ति है। इसमें समाज का प्राण निहित है।
कार्यशाला के छठे दिन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, नोएडा परिसर के प्रोफेसर अरुण भगत ने बुधवार को सेक्टर−62 स्थिति प्रेरणा जनसंचार संस्थान व प्रेरणा शोध न्यास के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय ‘संचार एवं मीडिया कौशल’ कार्यशाला के छटवें दिन ‘नैतिक मूल्य और मीडिया’ विषय पर व्यक्त किए।
प्रो. अरुण भगत ने कहा कि नैतिक मूल्यों के बिना पत्रकारिता का कोई महत्व नहीं है, यह जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य होता है, यह ज्ञान, विज्ञान और अनुभव को हस्तान्तरण करने का एक सशक्त माध्यम है । यह देश में सभ्यता, संस्कृति और प्राचीन परम्पराओं को आम नागरिकों तक पहुंचाने की संवाहक बनी रहे, समाज में नैतिकता बनाए रखने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता के बिना समाज की कल्पना नहीं की जा सकती, राष्ट्र में उच्च आदर्शों को स्थापित करने के लिए इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है, नागरिकों में वैचारिक जागरूकता लाना इसका प्रमुख ध्येय होना चाहिए । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि देश के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, जो सबके लिए बराबर है, मीडिया के लिए संविधान में कोई अलग से उल्लेख नहीं है ।
प्रो. अरुण भगत ने बताया कि इसके तहत कोई भी व्यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है, हालांकि, यह अधिकार सार्वभौमिक नहीं है, और इस पर समय-समय पर युक्तियुक्त निर्बंधन लगाए जा सकते हैं ।
प्रो. अरुण भगत ने कहा कि नैतिक मूल्यों का निर्धारण समाज करता है, और ये समाज द्वारा ही बनाए जाते हैं, इनकी पत्रकार के मार्गदर्शन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका होती है, उन्होंने कहा कि चीन में मीडिया को कम स्वतंत्रता के बाद भी वहां पर आचार संहिता है। कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका के बाद मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ समाज द्वारा माना गया है, समाज में जब लोगों का कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका से भरोसा उठ जाता है, तब वो पत्रकारिता की तरफ उम्मीद की किरण से देखते हैं, पत्रकारिता उनकी उम्मीदों पर खरा उतरती रहे, नहीं तो लोगों का इस पर से भरोसा उठ जाएगा ।