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शहीद दिवस पर भारत के तीन सपूत भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को हिन्द न्यूज टीवी की तरफ से नमन

शहीद दिवस पर भारत के तीन सपूतों- भगतसिंह सुखदेव और राजगुरु को नमन हिन्द न्यूज़ की और से

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भारत  में २३ मार्च को मनाया जाता है। 23 मार्च, की मध्यरात्रि को ब्रिटिश   हुकूमत ने भारत  के तीन सपूतों- भगतसिंह सुखदेव  और राजगुरु  को फाँसी पर लटका दिया था। शहीद दिवस के रूप में जाना जाने वाला यह दिन यूं तो भारतीय  इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है, पर स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं। इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस मनाया जाता है।

आजाद भगत सिंह एक सच्चे देशभक्त  क्रांतिकारी 

लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फ़ांसी दी गई थी. उन पर इल्ज़ाम था कि उन्होंने एक ब्रितानी अधिकारी की हत्या की थी.

लेकिन भगत सिंह की पहचान सिर्फ एक देशभक्त क्रांतिकारी तक ही सीमित नहीं है, वो एक आज़ाद ख्याल व्यक्तिव थे.

1928 में भगत सिंह जब 21 साल के थे, तब ‘किरती’ नामक पत्र में उन्होंने ‘नए नेताओं के अलग-अलग विचार’ नाम से एक लेख लिखा था.

वे असहयोग आंदोलन की असफलता और हिन्दू-मुस्लिम झगड़ों की मायूसी के बीच उन आधुनिक विचारों की तलाश कर रहे थे जो नए आंदोलन की नींव के लिए ज़रूरी था.

इस पर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चमनलाल कुछ इस तरह रौशनी डालते हैं.

भगत सिंह के राजनैतिक मायने 


शहीद दिवस पर भारत के तीन सपूतों- भगतसिंह सुखदेव और राजगुरु को नमन हिन्द न्यूज़ की और से

भगत सिंह की तस्वीरों को तो सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी विचारधाराओं के अनुरूप गढ़ लिया लेकिन उनके क्रांतिकारी विचारों को परे रख दिया गया. किसी ने उन पर कोंग्रेसी विचार  डाल दिए, तो किसी ने उन्हें भारत की सभ्यता का संरक्षक बना डाला.

भगत सिंह के नास्तिकत होने पर विचार हों या फिर समाजवाद से जुड़े उनके लेख, कोई भी  राजनैतिक दल इन पर गौर करने की कोशिश नहीं करता.

प्रोफसेर चमनलाल के अनुसार सबसे बड़ी वजह

प्रोफेसर चमनलाल बताते हैं, “पिछले 15-20 सालों में समाज में एक टुकड़ा ऐसा हुआ है जो चाहता है कि भगत सिंह का जो वैचारिक रूप है, जो उनका बौद्धिक रूप है और उनका चिंतक क्रांतिकारी रूप लोगों के सामने आए ही नहीं.

भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें चाहने वाले जितने  भारत में  मौजूद हैं तो उतने ही सरहद की दूसरी तरफ पाकिस्तान  भी.मौजूद हे

पाकिस्तान में भी भगत सिंह की याद में हर साल 23 मार्च को ख़ास कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. भगत सिंह के जन्म बंगा नाम के जिस गांव में हुआ था, वह पाकिस्तान में ही है. सरहद पार तमाम लोग इकट्ठा होते हैं और भगत सिंह को याद करते हैं.

“भगत सिंह की पाकिस्तान में बहुत इज़्ज़त है. यहां उनके बहुत दीवाने हैं. उनके पिता, दादा का बनाया हुआ घर आज भी पाकिस्तान में मौजूद है. उनके दादा अर्जुन सिंह ने 120 साल पहले जो आम का पेड़ लगाया था, वो आज भी मौजूद है. उनके गांव का नाम बदल कर भगतपुरा रख दिया गया है. हर साल 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहीदी दिवस मनाया जाता है.”

 

क्यों भगत सिंह का क्यों अदालती कत्ल किया गया

लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें उन्होंने भगत सिंह की फ़ांसी का मुकदमा दोबारा खोलने की बात कही थी.  भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ग़लत मुक़दमे के तहत फ़ांसी दी गई और वे इस मामले में ब्रिटिश हुकूमत से माफ़ी की मांग भी की थी.

 

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